सुकून कैसे मिले…

हम बैठे है घरों में सुकून से….
हमें बस इल्तज़ा इतनी की बीमारी से सुकून मिले
जिनकी गरीबी ही बीमारी बन गयी, पूछो उनसे की भाई तुम क्यू चले।
कही छोटा बच्चा हाथों में, कहीं चल रही जच्चा रातो में,
कही भूख से कदम किसी के रुके, और कही तो दम किसी के रुके,
फिर पूछो की भाई तुम क्यू चले
हमें तो बस इल्तज़ा इतनी की बीमारी से सुकून मिले
कोई खाना लेकर पहुचा है, किसी ने राशन दान किये
पर स्मृति ले लेकर सबने उनका भिखारी सा मान किये
ये मजबूरी है उसकी वरना, वह भी स्वाभिमान से थे पले
हमें बस इल्तज़ा इतनी की बीमारी से सुकून मिले
कहीं पर बसे भी दौड़ी है, कही स्पेशल प्लेन उड़ाए है
पर अब भी सड़को पर यह कौन जो पैदल चलते जाए है
पैसे वालो को तवज्जों, यहाँ सबसे पहले है मिले
हमें बस इल्तज़ा इतनी की बीमारी से सुकून मिले
हमें बस इल्तज़ा इतनी की बीमारी से सुकून मिले….
#मन घुमक्कड़

Published by: Yogesh D

An engineer, mgr by profession, emotional, short story/Poem writer, thinker. My view of Life "Relationships have a lot of meaning in life, so keep all these relationships strong with your love"

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