
ये मौसम ये बहारे
ये फूल और तारे
तुम बिन तो हमको
सुहाते नही है
मैं नींदों में जागू
फिर सोने को तरसू
ऐसे कोई ख्वाब
मुझे आते नही है
मैं जाकर के अपनी
उन्हें बाते बता दू
कभी चाय पे वो
बुलाते नही है
है शाखे जो काटी
इन पेड़ों की जब से
वहाँ पंछी भी
चहचहाते नही है
थी बाते बहुत सी
जो कहनी थी उनसे
मगर मशरूफियत में
कह पाते नही है
ये नजरे है तरसे
बस उस एक झलक को
मगर वो है कि नजरे
उठाते नही है
वो जुल्फे जो उड़ उड़ के,
आंखों पे आये
और हाथों से वो अपने इनको हटाये
हवा भी ऐसी चल पाती नही है
मैं ग़ज़लों में अब भी
लिखता हूं उसको
वो चहरा अभी भी
दिखता है मुझको
मैं वापस उसी दौर में पहुच जाऊ
पुरानी ग़ज़ल को मुक़म्मल बनाऊ
मग़र उम्र पीछे हो पाती नही है
वो भूला, मैं भूला है भूला जहाँ ये
मुकद्दर में नही,हमने दिल को बताया
जो आया हमारे, जीवन मे साथी
उसी को ही चाहा, ये जीवन लुटाया
मगर मीठे कड़वे यादों के मंजर
दिल से अभी भी भूलाते नही है
ये मौसम ये बहारे
ये फूल और तारे
तुम बिन तो हमको
सुहाते नही है
#मन घुमक्कड़
I am glad that you found time to write a poem again and share it with us, dear Yogesh.
“sweet bitter memories” – I love this poem, although it makes me a bit sad.
Maybe the next season, next spring
those flowers and stars
will suit you once more?
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Thank you ma’am for your kind words!🙏🙏 Sometimes I make myself sad for poetry, in reality there is no sorrow in life. It is a great thing for me to have a reader like you for my poems. Take care of yourself ma’am🙏🌷😊🤍
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