
दरों दीवार है जुड़ी,
मगर बेगाने से हैं लोग।
रास्ता एक मगर,
अनजाने से हैं लोग।।
इमारतें और ऊँची,
हो रही शहर की।
मगर “सोच” से छोटे,
होते जा रहे हैं लोग।
रास्ता एक मगर,
अनजाने से है लोग।।
पेट्स रखना अब,
घर की शान हो चली।
घर के बुजुर्गों से कहाँ,
निभा पा रहे हैं लोग।
रास्ता एक मगर,
अनजाने से हैं लोग।।
एक घर में ही
सारा परिवार साथ नही।
रिश्तों में ही खंजर,
चला रहे हैं लोग।
रास्ता एक मगर,
अनजाने से हैं लोग।।
हर शख्श चाहता है,
घर को महल बनाना।
मगर शहर को तो,
ग़लीज़ बना रहे हैं लोग।
रास्ता एक मगर,
अनजाने से हैं लोग।।
(ग़लीज़=अपवित्र, अशुद्ध)
#मन घुमक्कड़
That’s absolutely right. 🙂
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Thank you so much🙏🙏🌻
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Waah!
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Thank you so much🙏🙏
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Adorable thoughts..
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Thank you very much abhishek. It means a lot!🙏🙏🤗🌻
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