बूढ़ी आँखे…

कभी हँसकर कहती
कभी भीग वो जाती
वो आँखे दूर से ही
मुझे सारी बात बताती

चिंता उसकी जब भी करता
बिन बोले भरोसा दिलाती
मानो कह रही कि मैं ठीक हूं
और पलके नीचे आ जाती

हँसी में अक्सर वो आँखे
पूरी बंद हो जाती
वैसी हँसी उस चेहरे पर
अब भी क्यूँ नही आती

खुद से पहले वो आँखे
बच्चों पर आंसू बहाती
अपने हर दर्द को
मुस्कुराहट में छुपा जाती

मुझे समझने उन आँखों को
शब्दों की दरकार नही
उन्हें देख हम समझे
क्या गलत है और क्या सही

बच्चे की खुशी में खुश रहती
उनके गमों में वह रोती
एक एक आंसू उनका जैसे
सागर से निकले मोती

इन आँखों के आगे
सब बुरी नज़र दूर है भागे
बच्चे जब तक घर न आये
ये आँखे तब तक जागे

ये थकी थकी सी बूढ़ी आँखे
और उनमे चिंता की लकीरें
इनमे ही ज़न्नत है बच्चों की
करलो सज़दा सुबह सवेरे…

#मन घुमक्कड़

Published by: Yogesh D

An engineer, mgr by profession, emotional, short story/Poem writer, thinker. My view of Life "Relationships have a lot of meaning in life, so keep all these relationships strong with your love"

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