
गर न होते तुम तो न वजूद मेरा होता
न ये नाम ये शोहरत
न एहतराम मेरा होता
मंजिल पे मुझे पहुँचाकर कहीं दूर
चल दिये तुम तो
अब न दुआ तेरी होती न सलाम मेरा होता
जब भी था रुका तो पीछे खड़े तुमको पाया
तुम दिखो इसलिए बार बार मुड़ता हूँ
पर अब दूर तलक कहीं न नामों निशान तेरा होता
हरदम लख़्त-ए-जिगर सा समझा तुमने
सोचा कुछ हक़ अदा मैं भी कर पाऊँ
पर तेरा कोई ठौर ठिकाना या वाकिफ़ तो मिला होता
बन के मददगार मुझे क़ाबिल करने
तुम हर दम मसरूफ़ रहते थे
अब मसरूफ़ हम भी है पर उसमें कोई शागिर्द नही होता
मुझको यक़ीन है जानें से पहले
तुमने जरूर पुकारा होगा
कैसे मैं सुन न पाया ऐसा तो कोई शागिर्द नहीं होता
करके कुछ कर्म गुरु सा बन पाएं
उनसे जो मिला वो औरों को दे जाएं
यहीं गुरुदक्षिणा उसकी क्योंकि गुरु का कोई मोल नही होता
#मन घुमक्कड़
Bhavbheene Shradhha Suman 🙏🙏
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Thanks a lot ma’am 🙏🌻
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करके कुछ कर्म गुरु सा बन पाएं
उनसे जो मिला वो औरों को दे जाएं
यहीं गुरुदक्षिणा उसकी क्योंकि गुरु का कोई मोल नही होता।
बिल्कुल सही कहा। ज्ञान का प्रकाश जितना फैले गुरु को उतना ही अच्छा लगता है। बेहतरीन कविता।👌👌
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Thank you very much for your valuable words sir🙏😊🌻
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Swagata apka .🙏
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केह गए गुरु
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Thanks a lot😊😇🌻🎆🙏
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श्रद्धा भाव सी सुंदर आपकी ये रचना।🎉🙏
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Thank you very much ma’am for reading and appreciating🙏🌻
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Excellent dedication to a ‘Guru’!
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Thank you so much ma’am
🙏 it means a lot! 😊🌻
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Wah🙏🙏👌👌
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Glad you liked it.
Thanks a lot ma’am 🙏😊
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App bahot umda likhte ho.🌻👌
Muje bhi bahot kuch sikhne ko milta hai apke blog post se.😊👍
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This is your generosity. While I get to learn from your post. Thank you for your kind words ma’am 🙏😊🌻👍
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बहुत खूब।
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Thank you so much ma’am 🙏😊
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