
अपने अंतर मन में हमने
कभी नही है झाँका
इतना शोर है इस मन मे
जैसे जले पटाखा
मन मे भक्ति तनिक नही
और तन से धूनी रमाये
अपने निज स्वार्थ के लिए
ईश्वर को पूजें जाएं
ऊपर तन को निर्मल करने
हम गंगाजल डालें
अंतर मन के विष को कैसे
हम बाहर निकाले
ऊपर से तो करे सभी से
मिलकर हँसी अनुराग
भीतर मन में क्यों बैठा है
एक कालिया नाग
अपनी ऊर्जा को बस हमने
कर बुराई बर्बाद किया
ईश्वर से शिकायत करें
की उसने कुछ नही दिया
तन के लिए तो ख़रीदे हमने
सुंदर कपड़े हजार
पर अंतर मन को न दे पाये
कुछ अच्छे शुद्ध विचार
सब कुछ है पास हमारे
फिर कैसी मन मे व्याकुलता
अलग अलग विचारों की
एक बहती हो जैसे सरिता
जब अपने मन मे झाँका तो
ख़ुद को पाक़ न पाया
जबकि अपने जीवन मे हमने
औरों पर दोष लगाया
देखन मे तो बलिष्ठ लगे
पर भीतर से डरपोक
तन को दो गज कोठरी
मन को तीनों लोक
मत कर पूजा पाठ भले ही
बस कर लो नेक कुछ काम
तबही अपने अंतर मन
को मिल पायेगा आराम
#मन घुमक्कड़
सुंदर भाव कई बार पढ़ी है। अंतर्मन टटोलती सी बेहतरीन है ये रचना।🙏
मतलब मेरी कोशिश ठीक थी, आपका दिल से धन्यवाद मेम😊🙏🎆⚘
बहुत सुन्दर कविता।🎉
बहुत बहुत आभार आपका 😊🙏🌻
कटाक्ष भरी बेहतरीन रचना।👌👌
Thank you so much sir, it means a lot!🙏😊
🙏🙏
Vah…bahot khub👌👌
Thank you so much 🙏
It is so comforting to read good hindi poetry.
Thank you ma’am for your valuable comment 🙏✨🙂
👌👌👌nice
Thank you for reading and liking 🙏
Wlcm🙏😊
Kya baat hai
Thank you so much Abhishek, the😍☺️🙏