पिता, एक फ़रिश्ता..

Happy Father’s Day…
उंगली पकड़ पिता ने हमको
चलना सिर्फ न सिखलाया
कैसे उठते हैं गिरके
ये भी तो था बतलाया

अपनी तकलीफों को वह हरदम
अपने बच्चों से छुपाता है
ग़लत राह न बच्चे पकड़े
इसलिए सख्त हो जाता है

हर बाधा में पिता बच्चों की
ढाल सा बन जाता है
ख़ामोश पिता भी अपने बच्चों की
रक्षा में उग्र हो जाता है

जब कभी दुखी मैं होता था
तुम प्यार से मुझे समझाते थे
मिसालें देकर महानों के
क़िस्से हमें सुनाते थे

सुने हुए वह सब क़िस्से
हमारे लिए नाकाफ़ी थे
जिससे हमे प्रेरणा मिली
उसमे आप ही काफ़ी थे

कहते हार न मानो बेटा
बस तुम अपने लक्ष्य को जानो
कड़ी मेहनत से तुम उसको
बस पूरा करने की ठानो

सारी उम्र पिता बच्चों के
सुख की एक लड़ी लगाते
अब बच्चे भी क्यों न पिता की
बुढ़ापे की छड़ी बन जाते

बड़े होकर क्यूँ बच्चों को
पिता की बातें खलती है
जब खुद पिता वो बनते तब
अहमियत पता चलती है

सिर्फ जीवन ही नही दिया
संस्कार भी तुमने हममें गढ़े
बस उन्ही जीवन के उसूलों को
लेकर पथ पर हम आगे बढ़े

हर फ़रमाइश हमारी पापा
बन चिराग़ जिन मुक़म्मल करते
अब जब ख़्वाहिश होती तुम्हारी
क्यों कहने में संकोच हो करते

उम्र हो चली तो क्या पापा
अब भी चेहरे पे नूर है
क्यूँ करते हो इतनी फ़िक्ररे
जब ख़िदमत तेरा खून है

जिनसे है जीवन मे खुशियां
जिनसे मिली हमें पहचान
करते बच्चों की दुनियां रोशन
वह ईश्वर तुल्य पिता महान…


#मन घुमक्कड़

Published by: Yogesh D

An engineer, mgr by profession, emotional, short story/Poem writer, thinker. My view of Life "Relationships have a lot of meaning in life, so keep all these relationships strong with your love"

12 Comments

12 thoughts on “पिता, एक फ़रिश्ता..”

    1. बहुत अच्छी लाइन दोस्त👌👌
      बिलकुल भाई आज उन्ही की वज़ह से तो हम है। धन्यवाद अभिषेक🙏

      Like

Leave a reply to Deeksha Pathak Cancel reply