
मैं तेरे दर पे नही आऊंगा
रोज़ तेरे सामने बैठकर ही चला जाऊंगा
मैं तेरे दर पर नही आऊंगा..
न सर पर छत है न दीवार है कोई
ये कैसा जीवन दिया तुमने
न खाने का ठिकाना न कपड़े है बदन पे
आख़िर क्यों ऐसे हालातों में पैदा किया तुमने
इससे अच्छा तो मैं पहले ही मर जाता
जिंदा रहकर भी जिंदा कहाँ किया तुमने
हर बच्चें का अपना परिवार है यहाँ
मुझे इतनी भीड़ में अकेला क्यूं किया तुमने
शिकायत ही तो कर सकता हूं तुझसे मौला
कोई रहमगर भी तो नही दिया तुमने
लावारिस हूं सड़क में ही एक दिन मर जाऊंगा
पर मेरे मालिक, मैं तेरे दर पे नही आऊंगा..
मैं तेरे दर पे नही आऊंगा..
मैं तेरे दर पे नही आऊंगा..
#मन घुमक्कड़
समाज की एक भाग की पीड़ा को बखूबी लिखा है आपने।
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Thank you so much 🙏🌻🎆
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बहोत दर्द है….
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Thank you so much🙏
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आक्रोश भरी खूबसूरत कविता।👌👌
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर
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Nicely expressed revolting emotions.
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Thank you so much🙏
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Ek Aakrosh
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Absolutely right Abhishek, Thank you so much.
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