हमारा मस्तिस्क एक बहुमूल्य यंत्र है यह एक शांतिमय वातावरण में ही ठीक तरह से काम कर सकता है। हद से ज्यादा गर्मी में तो इंजन, मोटर और मशीनों भी कार्य करना बंद कर देती है, उन्हें भी ठीक से कार्य करने के लिए एयर कंडीशनर की आवश्यकता होती है, इसी प्रकार मस्तिष्क को ठंडा रखना अत्यंत आवश्यक है।
मस्तिष्क को बाहरी गर्मी, बाहरी आवरण जैसे धूप, पानी,हवा आदि से मिलती है, परंतु अन्दरूनी गर्मी बढ़ने का कारण हमारी उत्तेजनाएं होती है। वह जिनती बढ़ेगी उतना ही मानसिक क्षति पहुचायेगी, यही हमारे क्रोध का कारण बनेगा।
क्रोध के समय व्यक्ति यह भूल जाता है कि क्या सही है और क्या गलत। एक स्वस्थ्य, शांत व्यक्ति की तुलना में कमजोर, दुर्बल और तनावग्रस्त व्यक्ति ज्यादा क्रोधित होता है। परंतु कुछ विवेकपूर्ण क्रोध भी होते है जोकि आवश्यक भी होते है यदि इन क्रोधो को पूरी तरह से त्याग दे तो फिर अनीति, अन्याय, बुराई आदि का दमन संभव न हो पाए।
यदि क्रोध शीघ्र ही समाप्त हो जाये तो उससे होने वाले नुकसान कम होंगे परंतु यही क्रोध हमारे अंतःकरण में जम जाए तो यह बैर का रूप ले लेगा जिसके दुष्परिणाम भयावह होते है। ज्यादा क्रोध करने वालो को रक्तचाप तथा हृदय संबंधी रोग होने की संभावना अधिक होती है।
क्रोध की स्थिति में पाचन तंत्र भी काम नही करता है, क्रोध की स्थिति में जो कुछ खाया जाए तो उसका पाचन नही होता, बल्कि जो भोजन पहले से पेट मे है उसका पचना भी बंद हो जाता है। क्रोध करते समय मुँह में लार नही बनती, मुँह सूख जाता है यही कारण है कि क्रोधी व्यक्ति को बहुत जोर की प्यास लगती है।
क्रोध का प्रभाव तुरंत देखा जा सकता है, जैसे आँखों का लाल हो जाना, शरीर का काँपना, हृदय की धड़कनो का तेज होने। एक क्रोधी चिड़चिड़ी माँ के द्वारा बच्चे को दूध पिलाने पर उसके पेट मे दर्द भी हो सकता है ।
क्रोध उत्पन्न होने के लिए हम उतने जिम्मेदार नही हैं, जितनी कि हमारी परिस्थितियां। क्रोध आये तो किसी भी प्रकार के शारीरिक कार्य मे लग जाओ। किसी कार्य के विपरीत परिणाम निकले तो स्वाध्याय या मनोरंजन में लग जाये तथा शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए नियमित व्यायाम करें, खुश रहें निरोग रहे। धन्यवाद
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सच कहा आपने।
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बहुत बहुत आभार आपका🙏🌻🌷
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